चिट्ठाकारी

जनवरी 14, 2008

चिट्ठाकारों की हैसियत के सही पैमाने

Filed under: चिट्ठाकार,बाजार,सरकार — Srijan Shilpi @ 6:45 पूर्वाह्न
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वह दौर हिन्दी ब्लॉगिंग में आने में अब अधिक देर नहीं है जब बाजार, सरकार, मेनस्ट्रीम मीडिया और अन्य ताकतवर प्रतिष्ठानों को ब्लॉगों का असर इस कदर महसूस होगा कि उन्हें ब्लॉगरों की हैसियत को अहमियत देना जरूरी लगने लगे। अंग्रेजी, जापानी, चीनी आदि भाषाओं की ब्लॉगिंग में वह दौर पहले ही शुरू हो चुका है। हिन्दी ब्लॉगिंग में इस तरह की ताकत और असर पैदा हो सकने की संभावनाएँ तो असीम हैं, पर ज्यादातर हिन्दी ब्लॉगर अब भी उसके बारे में बहुत सचेत नहीं दिखते।

हालाँकि कोई ब्लॉगर सचेत भाव से किसी हैसियत की चाह में ब्लॉगिंग शुरू नहीं करता। परंतु ब्लॉगिंग की यात्रा में एक दौर ऐसा आता है जब उसे अपने-आप से साफ-साफ पूछना पड़ता है कि वह आखिर किसके लिए और क्यों ब्लॉग लिख रहा है। जब किसी ब्लॉगर को अपने पाठकों के दायरे, उनकी अपेक्षाओं और सरोकारों की स्पष्ट पहचान हो जाती है, तब उसके लेखन की विषय-वस्तु का फोकस सघन होने लगता है और उसकी शैली की भेदकता तीव्र होने लगती है।

सर्च इंजन पर जब किसी विषय विशेष के लिए सर्च करने पर मिले परिणामों में कोई ब्लॉग पहले या दूसरे पृष्ठ पर आने लगता है तो फिर उस ब्लॉग के असर के प्रति सचेत होना हर उस सत्ता के लिए जरूरी हो जाता है, जिसके हित उसके कारण प्रभावित हो सकते हैं। हिन्दी में सर्च की सुविधा सुगम होने के बाद एग्रीगेटर और फीड रीडर के बजाय सर्च इंजन के जरिए चिट्ठों पर आने वाले गैर-चिट्ठाकार पाठकों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। मतलब साफ है कि वेब तकनीक की प्रगति ने हिन्दी चिट्ठाकारी को अब उस चरण में पहुँचा दिया है जब बाजार, सरकार, मीडिया और अन्य सत्ता प्रतिष्ठानों के हित इन चिट्ठों के कंटेंट की प्रासंगिकता, विश्वसनीयता और पठनीयता के आधार पर प्रभावित होने लगेंगे। हम जानते हैं कि पारंपरिक मीडिया की तुलना में ब्लॉग जैसे नवीन जनसंचार माध्यम में पाठकों की संख्या उतनी मायने नहीं रखती, जितनी कि संबंधित विषय पर सर्च इंजन से मिले परिणामों में किसी ब्लॉग के पेज की स्थिति और उस पर मौजूद कंटेंट में पाठकों की राय पर असर डाल सकने की क्षमता।

हिन्दी चिट्ठाकारों में से कुछ तो शब्दों के समृद्ध किसान हैं, कुछ मौज-मजे के मंच के महारथी हैं, कुछ बात-बेबात भड़क जाने वाले भड़ासिए हैं, कुछ हर चलती बहस के अखाड़े में कूदकर अपना दाँव आजमा लेने वाले शब्दों के कुश्तीबाज हैं, कुछ हवा का रुख भाँपकर अपना ढर्रा बदल लेने वाले चतुर सुजान हैं, कुछ कविता, संगीत, गीत-ग़ज़ल की महफिल में रमे रहने वाले कला-निधान हैं, तो कुछ चिट्ठा संसार की सुर्खियों में बने रहने की जुगत में जुटे रहने वाले उद्यमी । मगर ऐसे ब्लॉगर कम ही हैं जो इस बारे में सचेत भाव से सक्रिय हों कि उनके ब्लॉग का असर बाजार, सरकार, कॉरपोरेट मीडिया या कोई अन्य सत्ता प्रतिष्ठान रत्ती भर भी सीधे-सीधे महसूस कर सके। बात महज किसी सत्ता प्रतिष्ठान के विरोध या समर्थन में खड़े होने के संदर्भ में नहीं है, उस तरह के ब्लॉग भी हिन्दी में अनेक हैं। बात कंटेंट में संबंधित विषय पर फोकस की सघनता, तथ्यों की विश्वसनीयता और प्रस्तुति शैली की प्रभावपरकता की है, जो किसी उपभोक्ता की पसंद को, किसी मतदाता के मत को, किसी पाठक या दर्शक की राय को, किसी समर्थक के पक्ष को, किसी प्रतिद्वंद्वी की प्रतिष्ठा को प्रभावित कर सकने की काबिलियत रखता हो। आने वाले समय में किसी ब्लॉगर की हैसियत की अहमियत इसी आधार पर तय होगी।

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